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Draupadi Katha | पांचाली कथा |द्रौपदी: एक कठिनाई से भरी विवाह कथा


 पांचाली कथा  | Draupadi Katha 



द्रौपदी: एक कठिनाई से भरी विवाह कथा

"द्रौपदी: एक कठिनाई से भरी विवाह कथा" है एक कवितात्मक संक्षेप, जो महाभारत के कथानक में द्रौपदी की विवाह और उसके उसके बाद के संघर्षों को वर्णित करता है। यह कथा द्रौपदी के  अनुभवों में  माता कुंती के आदेश का आदर्श बनाने के बाद भी, उसे अपने पतियों के दावों और समाज के संकटों का सामना करना पड़ता है।  यह कथा उसके व्यक्तित्व के संकटों और विजयों को छूने के माध्यम से एक प्रेरणादायक संदेश प्रस्तुत करती है।


द्रौपदी (द्रौपदी, कृष्णा, पांचाली और यज्ञसेनी के रूप में भी जानी जाती हैं) महाभारत की प्रमुख महिला पात्र हैं। वह पांडवों के पांच भाईयों की साझी पत्नी थीं। उन्हें सुंदरता, साहस और बहुविवाह से यादगार बनाया गया है। उनके जीवन में पासे का खेल, वनवास, युद्ध और सम्राटा के दर्जे तक कई महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं। द्रौपदी की कथा कला, प्रदर्शन और साहित्य में प्रेरणा का स्रोत रही हैं।

द्रुपद ने  पाला मुझको, जैसे पुत्री का रूप ।

द्रुपद पुत्र शिखंडी भी था, मेरा भाई अनूप।

स्वयंवर से हुआ विवाह, मेरे अर्जुन संग।


माता कुंती ने बांधा बंधन पांचों पांडव संग।

पांच पति थे मेरे, सो पांचाली कहलायी।

युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव संग हस्तिनापुर आई।

माता कुंती की आज्ञा को आशीर्वाद समझकर माना,

लेकिन क्यों पड़ा मेरे पतियों को मुझे दाव पर लगाना।

न थी धन मैं, न थी वस्तु, मैं भी हूँ एक नारी। 

फिर क्यों चली मेरे चरित्र पर समाज की ये आरी।

भरी सभा में दुर्योधन ने मेरा पल्लू पकड़ा

खींच कर मेरा चीर, क्यों उसने बाहों में जकड़ा?

युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव भी थे सभा में बैठे


गरदन थी उनकी झुकी हुई, वो दास बने थे बैठे।

इतना सब सहकार मैंने, भ्राता को अपने पुकारा।

मेरे आंसू देखकर, कृष्ण ने मुझे दिया सहारा।

चीर बढ़ाकर मेरा उसने, मेरी लाज बचाई।

क्यों खेले थे जुआ, ये मिलकर पंचों भाई।

लज्जित होकर रो-रोकर, मैंने प्रण ये लिया था।

जो केश पकड़े दुर्योधन ने, उनको उसके रक्त से धोना था।


पाँचो पुत्रों को खोकर मैंने, एक और दुख ये सहा था

अश्वत्थामा को धर्म युद्ध में फिर भी क्षमा किया था।



नारी का सम्मान न जहां हो, वहां न चाहिए रहना

पांच पतियों ने लगाकर दांव ,छीना मेरी लाज का गहना।


महाभारत ने सब कुछ छीना, जो था मेरे पास।

 अब रही नहीं थी जीने की, मेरी कोईआस।



लेखिका रेखा शर्मा द्वारा रचित

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