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Ram Ashtak |श्री रामाष्टक | श्री रामचंद्रजी की आरती



श्री रामाष्टकः(Ram Ashtak)



हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशव ।

गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा ।।

हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते ।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम् ।।

आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम् ।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव सम्भाषणम् ।।

बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम् ।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि रामायणम् ।।


श्री रामचन्द्र जी कीआरती 


जगमग जगमग जोत जली है । राम आरती होन लगी है ।।

भक्ति का दीपक प्रेम की बाती । आरति संत करें दिन राती ।।

आनन्द की सरिता उभरी है । जगमग जगमग जोत जली है ।।

कनक सिंघासन सिया समेता । बैठहिं राम होइ चित चेता ।।

वाम भाग में जनक लली है । जगमग जगमग जोत जली है ।।

आरति हनुमत के मन भावै । राम कथा नित शंकर गावै ।।

सन्तों की ये भीड़ लगी है । जगमग जगमग जोत जली है ।।



श्री रामचंद्रजी की आरती


आरती कीजै रामचन्द्र जी की।
हरि-हरि दुष्टदलन सीतापति जी की॥

पहली आरती पुष्पन की माला।
काली नाग नाथ लाये गोपाला॥

दूसरी आरती देवकी नन्दन।
भक्त उबारन कंस निकन्दन॥

तीसरी आरती त्रिभुवन मोहे।
रत्‍‌न सिंहासन सीता रामजी सोहे॥

चौथी आरती चहुं युग पूजा।
देव निरंजन स्वामी और न दूजा॥

पांचवीं आरती राम को भावे।
रामजी का यश नामदेव जी गावें॥



Shri Ram Stuti