Sita Mata Chalisa |माता सीता: शक्ति, प्रेरणा और स्त्री सम्मान
माता सीता समस्त संसार के लिए एक प्रेरणा स्रोत हैं। वे हमें सदैव अपने चरित्र और सम्मान को सर्वोपरि रखने की महत्वपूर्णता सिखाती हैं। माता सीता से हमें प्रेरणा मिलती है कि अगर स्त्री चाहे तो कुछ भी कर सकती है।
माता सीता, भगवान राम की पत्नी, संयम, साहस, धैर्य, स्नेह, विश्वास और समर्पण की प्रतिष्ठा के प्रतीक हैं।
उनकी शक्ति, साहस और त्याग ने उन्हें एक महान महिला के रूप में स्वीकार किया है।
इसलिए, हमें माता सीता से प्रेरणा लेनी चाहिए कि हमें अपनी विशेषताओं को विकसित करना चाहिए और सामाजिक, पारिवारिक और व्यावसायिक में स्त्री शक्ति को प्रगति के माध्यम से प्रदर्शित करना चाहिए। हमेशा याद रखें कि हमारा सम्मान हमारी असली पहचान है और हमें अपने चरित्र और सम्मान को सदैव ऊँचा रखना चाहिए।
उन्होंने अपने पति के साथ अयोध्या छोड़कर वनवास में रहते हुए अनेक कठिनाइयों का सामना किया। उनका वचन परामर्श, आदर्शता, पातिव्रत्य और त्याग का प्रतीक है।
माता सीता के प्रति हमारी आदर्श और सम्मान भावना का विकास होना चाहिए। वे हमें दिखाती हैं कि स्त्रियों के पास असीमित शक्ति होती है और वे समाज में किसी भी क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
इसलिए, हमें माता सीता से प्रेरणा लेनी चाहिए कि हमें अपनी विशेषताओं को विकसित करना चाहिए और सामाजिक, पारिवारिक और व्यावसायिक में स्त्री शक्ति को प्रगति के माध्यम से प्रदर्शित करना चाहिए। हमेशा याद रखें कि हमारा सम्मान हमारी असली पहचान है और हमें अपने चरित्र और सम्मान को सदैव ऊँचा रखना चाहिए।
सीता माता चालीसा | Sita Mata Chalisa
॥ दोहा ॥
बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम ।
राम प्रिय किरपा करें सुमिरौं आठों धाम ॥
कीरति गाथा जो पढ़ें सुधरैं सगरे काम ।
मन मन्दिर बासा करें दुःख भंजन सिया राम ॥
॥ चौपाई ॥
राम प्रिया रघुपति रघुराई ।
बैदेही की कीरत गाई ॥१॥
चरण कमल बन्दों सिर नाई ।
सिय सुरसरि सब पाप नसाई ॥२॥
जनक दुलारी राघव प्यारी ।
भरत लखन शत्रुहन वारी ॥३॥
दिव्या धरा सों उपजी सीता ।
मिथिलेश्वर भयो नेह अतीता ॥४॥
सिया रूप भायो मनवा अति ।
रच्यो स्वयंवर जनक महीपति ॥५॥
भारी शिव धनुष खींचै जोई ।
सिय जयमाल साजिहैं सोई ॥६॥
भूपति नरपति रावण संगा ।
नाहिं करि सके शिव धनु भंगा ॥७॥
जनक निराश भए लखि कारन ।
जनम्यो नाहिं अवनिमोहि तारन ॥८॥
यह सुन विश्वामित्र मुस्काए ।
राम लखन मुनि सीस नवाए ॥९॥
आज्ञा पाई उठे रघुराई ।
इष्ट देव गुरु हियहिं मनाई ॥१०॥
जनक सुता गौरी सिर नावा ।
राम रूप उनके हिय भावा ॥११॥
मारत पलक राम कर धनु लै ।
खंड खंड करि पटकिन भूपै ॥१२॥
जय जयकार हुई अति भारी ।
आनन्दित भए सबैं नर नारी ॥१३॥
सिय चली जयमाल सम्हाले ।
मुदित होय ग्रीवा में डाले ॥१४॥
मंगल बाज बजे चहुँ ओरा ।
परे राम संग सिया के फेरा ॥१५॥
लौटी बारात अवधपुर आई ।
तीनों मातु करैं नोराई ॥१६॥
कैकेई कनक भवन सिय दीन्हा ।
मातु सुमित्रा गोदहि लीन्हा ॥१७॥
कौशल्या सूत भेंट दियो सिय ।
हरख अपार हुए सीता हिय ॥१८॥
सब विधि बांटी बधाई ।
राजतिलक कई युक्ति सुनाई ॥१९॥
मंद मती मंथरा अडाइन ।
राम न भरत राजपद पाइन ॥२०॥
कैकेई कोप भवन मा गइली ।
वचन पति सों अपनेई गहिली ॥२१॥
चौदह बरस कोप बनवासा ।
भरत राजपद देहि दिलासा ॥२२॥
आज्ञा मानि चले रघुराई ।
संग जानकी लक्षमन भाई ॥२३॥
सिय श्री राम पथ पथ भटकैं ।
मृग मारीचि देखि मन अटकै ॥२४॥
राम गए माया मृग मारन ।
रावण साधु बन्यो सिय कारन ॥२५॥
भिक्षा कै मिस लै सिय भाग्यो ।
लंका जाई डरावन लाग्यो ॥२६॥
राम वियोग सों सिय अकुलानी ।
रावण सों कही कर्कश बानी ॥२७॥
हनुमान प्रभु लाए अंगूठी ।
सिय चूड़ामणि दिहिन अनूठी ॥२८॥
अष्ठसिद्धि नवनिधि वर पावा ।
महावीर सिय शीश नवावा ॥२९॥
सेतु बाँधी प्रभु लंका जीती ।
भक्त विभीषण सों करि प्रीती ॥३०॥
चढ़ि विमान सिय रघुपति आए ।
भरत भ्रात प्रभु चरण सुहाए ॥३१॥
अवध नरेश पाई राघव से ।
सिय महारानी देखि हिय हुलसे ॥३२॥
रजक बोल सुनी सिय वन भेजी ।
लखनलाल प्रभु बात सहेजी ॥३३॥
बाल्मीक मुनि आश्रय दीन्यो ।
लव-कुश जन्म वहाँ पै लीन्हो ॥३४॥
विविध भाँती गुण शिक्षा दीन्हीं ।
दोनुह रामचरित रट लीन्ही ॥३५॥
लरिकल कै सुनि सुमधुर बानी ।
रामसिया सुत दुई पहिचानी ॥३६॥
भूलमानि सिय वापस लाए ।
राम जानकी सबहि सुहाए ॥३७॥
सती प्रमाणिकता केहि कारन ।
बसुंधरा सिय के हिय धारन ॥३८॥
अवनि सुता अवनी मां सोई ।
राम जानकी यही विधि खोई ॥३९॥
पतिव्रता मर्यादित माता ।
सीता सती नवावों माथा ॥४०॥
॥ दोहा ॥
जनकसुता अवनिधिया राम प्रिया लव-कुश मात ।
चरणकमल जेहि उन बसै सीता सुमिरै प्रात ॥