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GaneshJi Ki Aarti in Hindi |श्री गणेश आरती | गणेश चतुर्थी व्रत


GaneshJi Ki Aarti in Hindi 'श्री गणेशाय नम:'



गणेश  चतुर्थी व्रत 

महत्वपूर्ण जानकारी
· कृष्ण पक्ष चतुर्थी (तिथि क्षय)
· गुरुवार, 06 जुलाई 2023
· चतुर्थी तिथि प्रारंभ: 06 जुलाई 2023 प्रातः 6:30 बजे
· चतुर्थी तिथि समाप्त: 07 जुलाई 2023 प्रातः 3:13 बजे


भारतीय हिन्दू माह के प्रत्येक चंद्रमास में दो चतुर्थी तिथियाँ होती हैं। पूर्णिमा या कृष्ण पक्ष के दौरान पूर्णिमा को संकष्टी चतुर्थी के रूप में जाना जाता है और शुक्ल पक्ष के दौरान अमावस्या के बाद एक विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। उपवास को सख्त माना जाता है और केवल फल, जड़ें जैसे आलू आदि और वनस्पति उत्पादों का सेवन करना चाहिए।

गणेश चतुर्थी को हिंदुओं में गणेश संकटहरा या संकटहरा चतुर्थी के रूप में भी जाना जाता है।

गणेश चतुर्थी व्रत तिथि 2023


जुलाई में चतुर्थी तिथि
कृष्णा पक्ष चतुर्थी
06 जुलाई को सुबह 6:30 बजे - 07 जुलाई 3:13 बजे

शुक्ला पक्ष चतुर्थी
21 जुलाई को सुबह 6:58 बजे - 22 जुलाई को सुबह 9:26 बजे

अगस्त में चतुर्थी तिथि
कृष्णा पक्ष चतुर्थी
04 अगस्त दोपहर 12:45 बजे - 05 अगस्त को सुबह 9:40 बजे

शुक्ला पक्ष चतुर्थी (नाग चतुर्थी)
19 अगस्त 10:20 बजे - 21 अगस्त 12:22 बजे

सितंबर में चतुर्थी तिथि
कृष्णा पक्ष चतुर्थी (शंती हारा चतुर्थी, हेराम्बा शंकिन चतुर्थी)
02 सितंबर 8:49 बजे - 03 सितंबर शाम 6:24 बजे

शुक्ला पक्ष चतुर्थी (गणेश चतुर्थी, समवात्सरी चतुर्थी पक्ष)
18 सितंबर 12:39 बजे - 19 सितंबर को दोपहर 1:43 बजे

अक्टूबर में चतुर्थी तिथि
कृष्णा पक्ष चतुर्थी
02 अक्टूबर सुबह 7:36 बजे - 03 अक्टूबर को सुबह 6:12 बजे

शुक्ला पक्ष चतुर्थी
18 अक्टूबर 1:26 बजे - 19 अक्टूबर को 1:12 बजे

कृष्णा पक्ष चतुर्थी
31 अक्टूबर 9:30 बजे - 01 नवंबर 9:19 बजे

नवंबर में चतुर्थी तिथि

शुक्ला पक्ष चतुर्थी
16 नवंबर 12:35 बजे - 17 नवंबर 11:03 बजे पूर्वाह्न

कृष्णा पक्ष चतुर्थी
30 नवंबर दोपहर 2:25 बजे - 01 दिसंबर 3:31 बजे

दिसंबर में चतुर्थी तिथि

शुक्ला पक्ष चतुर्थी
15 दिसंबर 10:30 बजे - 16 दिसंबर को रात 8:00 बजे

कृष्णा पक्ष चतुर्थी
30 दिसंबर सुबह 9:44 बजे - 31 दिसंबर को सुबह 11:56 बजे


गणेश चतुर्थी की 4 पौराणिक एवं प्रचलित कथाएं :

 व्रत में सुनने से दूर होंगे सारे संकट, मिलेगा अपार सुख|


'श्री गणेशाय नम:'
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत करने से घर-परिवार में आ रही विपदा दूर होती है, कई दिनों से रुके मांगलिक कार्य संपन्न होते है तथा भगवान श्री गणेश असीम सुखों की प्राप्ति कराते हैं। माह की किसी भी चतुर्थी के दिन भगवान श्री गणेश की पूजा के दौरान संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत की कथा पढ़ना अथवा सुनना जरूरी होता है। इससे संबंधित चार कथाएं प्रचलित हैं।

गणेश चतुर्थी व्रत की  पहली कथा :- पौराणिक एवं प्रचलित श्री गणेश कथा के अनुसार एक बार देवता कई विपदाओं में घिरे थे। तब वह मदद मांगने भगवान शिव के पास आए। उस समय शिव के साथ कार्तिकेय तथा गणेशजी भी बैठे थे। देवताओं की बात सुनकर शिव जी ने कार्तिकेय व गणेश जी से पूछा कि तुम में से कौन देवताओं के कष्टों का निवारण कर सकता है। तब कार्तिकेय व गणेश जी दोनों ने ही स्वयं को इस कार्य के लिए सक्षम बताया।

इस पर भगवान शिव ने दोनों की परीक्षा लेते हुए कहा कि तुम दोनों में से जो सबसे पहले पृथ्वी की परिक्रमा करके आएगा वही देवताओं की मदद करने जाएगा।

भगवान शिव के मुख से यह वचन सुनते ही कार्तिकेय अपने वाहन मोर पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा के लिए निकल गए, परंतु गणेश जी सोच में पड़ गए कि वह चूहे के ऊपर चढ़कर सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेंगे तो इस कार्य में उन्हें बहुत समय लग जाएगा। तभी उन्हें एक उपाय सूझा। गणेश अपने स्थान से उठें और अपने माता-पिता की सात बार परिक्रमा करके वापस बैठ गए। परिक्रमा करके लौटने पर कार्तिकेय स्वयं को विजेता बताने लगे। तब शिव जी ने श्री गणेश से पृथ्वी की परिक्रमा ना करने का कारण पूछा।

तब गणेश ने कहा - 'माता-पिता के चरणों में ही समस्त लोक हैं।' यह सुनकर भगवान शिव ने गणेश जी को देवताओं के संकट दूर करने की आज्ञा दी। इस प्रकार भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि चतुर्थी के दिन जो तुम्हारा पूजन करेगा और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देगा उसके तीनों ताप यानी दैहिक ताप, दैविक ताप तथा भौतिक ताप दूर होंगे। इस व्रत को करने से व्रतधारी के सभी तरह के दुख दूर होंगे और उसे जीवन के भौतिक सुखों की प्राप्ति होगी। चारों तरफ से मनुष्य की सुख-समृद्धि बढ़ेगी। पुत्र-पौत्रादि, धन-ऐश्वर्य की कमी नहीं रहेगी।

गणेश चतुर्थी व्रत की दूसरी कथा :- एक समय की बात है राजा हरिश्चंद्र के राज्य में एक कुम्हार था। वह मिट्टी के बर्तन बनाता, लेकिन वे कच्चे रह जाते थे। एक पुजारी की सलाह पर उसने इस समस्या को दूर करने के लिए एक छोटे बालक को मिट्टी के बर्तनों के साथ आंवा में डाल दिया।


उस दिन संकष्टी चतुर्थी का दिन था। उस बच्चे की मां अपने बेटे के लिए परेशान थी। उसने गणेशजी से बेटे की कुशलता की प्रार्थना की।

दूसरे दिन जब कुम्हार ने सुबह उठकर देखा तो आंवा में उसके बर्तन तो पक गए थे, लेकिन बच्चे का बाल बांका भी नहीं हुआ था। वह डर गया और राजा के दरबार में जाकर सारी घटना बताई।

इसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी मां को बुलवाया तो मां ने सभी तरह के विघ्न को दूर करने वाली संकष्टी चतुर्थी का वर्णन किया। इस घटना के बाद से महिलाएं संतान और परिवार के सौभाग्य के लिए संकट चौथ का व्रत करने लगीं।

गणेश चतुर्थी व्रत की तीसरी कथा :- एक समय की बात है कि विष्णु भगवान का विवाह लक्ष्‍मीजी के साथ निश्चित हो गया। विवाह की तैयारी होने लगी। सभी देवताओं को निमंत्रण भेजे गए, परंतु गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया, कारण जो भी रहा हो। अब भगवान विष्णु की बारात जाने का समय आ गया। सभी देवता अपनी पत्नियों के साथ विवाह समारोह में आए। उन सबने देखा कि गणेशजी कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। तब वे आपस में चर्चा करने लगे कि क्या गणेशजी को नहीं न्योता है? या स्वयं गणेश जी ही नहीं आए हैं? सभी को इस बात पर आश्चर्य होने लगा। तभी सबने विचार किया कि विष्णु भगवान से ही इसका कारण पूछा जाए।

विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।


विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।


विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।


विष्णु भगवान से पूछने पर उन्होंने कहा कि हमने गणेश जी के पिता भोलेनाथ महादेव को न्योता भेजा है। यदि गणेशजी अपने पिता के साथ आना चाहते तो आ जाते, अलग से न्योता देने की कोई आवश्यकता भी नहीं थीं। दूसरी बात यह है कि उनको सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर में चाहिए। यदि गणेशजी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं। दूसरे के घर जाकर इतना सारा खाना-पीना अच्छा भी नहीं लगता।

इतनी वार्ता कर ही रहे थे कि किसी एक ने सुझाव दिया- यदि गणेश जी आ भी जाएं तो उनको द्वारपाल बनाकर बैठा देंगे कि आप घर की याद रखना। आप तो चूहे पर बैठकर धीरे-धीरे चलोगे तो बारात से बहुत पीछे रह जाओगे। यह सुझाव भी सबको पसंद आ गया, तो विष्णु भगवान ने भी अपनी सहमति दे दी।

होना क्या था कि इतने में गणेश जी वहां आ पहुंचे और उन्हें समझा-बुझाकर घर की रखवाली करने बैठा दिया। बारात चल दी, तब नारद जी ने देखा कि गणेश जी तो दरवाजे पर ही बैठे हुए हैं, तो वे गणेश जी के पास गए और रुकने का कारण पूछा। गणेश जी कहने लगे कि विष्णु भगवान ने मेरा बहुत अपमान किया है। नारद जी ने कहा कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, तो वह रास्ता खोद देगी जिससे उनके वाहन धरती में धंस जाएंगे, तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा।

अब तो गणेश जी ने अपनी मूषक सेना जल्दी से आगे भेज दी और सेना ने जमीन पोली कर दी। जब बारात वहां से निकली तो रथों के पहिए धरती में धंस गए। लाख कोशिश करें, परंतु पहिए नहीं निकले। सभी ने अपने-अपने उपाय किए, परंतु पहिए तो नहीं निकले, बल्कि जगह-जगह से टूट गए। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए।

तब तो नारद जी ने कहा- आप लोगों ने गणेश जी का अपमान करके अच्छा नहीं किया। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है और यह संकट टल सकता है। शंकर भगवान ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेश जी को लेकर आए। गणेश जी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया, तब कहीं रथ के पहिए निकले। अब रथ के पहिए निकल को गए, परंतु वे टूट-फूट गए, तो उन्हें सुधारे कौन?

पास के खेत में खाती काम कर रहा था, उसे बुलाया गया। खाती अपना कार्य करने के पहले 'श्री गणेशाय नम:' कहकर गणेश जी की वंदना मन ही मन करने लगा। देखते ही देखते खाती ने सभी पहियों को ठीक कर दिया।

तब खाती कहने लगा कि हे देवताओं! आपने सर्वप्रथम गणेशजी को नहीं मनाया होगा और न ही उनकी पूजन की होगी इसीलिए तो आपके साथ यह संकट आया है। हम तो मूरख अज्ञानी हैं, फिर भी पहले गणेश जी को पूजते हैं, उनका ध्यान करते हैं। आप लोग तो देवतागण हैं, फिर भी आप गणेश जी को कैसे भूल गए? अब आप लोग भगवान श्री गणेश जी की जय बोलकर जाएं, तो आपके सब काम बन जाएंगे और कोई संकट भी नहीं आएगा। ऐसा कहते हुए बारात वहां से चल दी और विष्णु भगवान का लक्ष्मी जी के साथ विवाह संपन्न कराके सभी सकुशल घर लौट आए।

हे गणेश जी महाराज! आपने विष्णु को जैसो कारज सारियो, ऐसो कारज सबको सिद्ध करजो। बोलो गजानन भगवान की जय।


गणेश चतुर्थी व्रत की चौथी कथा : - श्री गणेश चतुर्थी व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तथा माता पार्वती नर्मदा नदी के किनारे बैठे थे। वहां माता पार्वती ने भगवान शिव से समय व्यतीत करने के लिए चौपड़ खेलने को कहा। शिव चौपड़ खेलने के लिए तैयार हो गए, परंतु इस खेल में हार-जीत का फैसला कौन करेगा, यह प्रश्न उनके समक्ष उठा तो भगवान शिव ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका एक पुतला बनाकर उसकी प्राण-प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा- 'बेटा, हम चौपड़ खेलना चाहते हैं, परंतु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है इसीलिए तुम बताना कि हम दोनों में से कौन हारा और कौन जीता?'

उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती का चौपड़ खेल शुरू हो गया। यह खेल 3 बार खेला गया और संयोग से तीनों बार माता पार्वती ही जीत गईं। खेल समाप्त होने के बाद बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिए कहा गया, तो उस बालक ने महादेव को विजयी बताया।

यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गईं और क्रोध में उन्होंने बालक को लंगड़ा होने, कीचड़ में पड़े रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता पार्वती से माफी मांगी और कहा कि यह मुझसे अज्ञानतावश ऐसा हुआ है, मैंने किसी द्वेष भाव में ऐसा नहीं किया।

बालक द्वारा क्षमा मांगने पर माता ने कहा- 'यहां गणेश पूजन के लिए नागकन्याएं आएंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऐसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे।' यह कहकर माता पार्वती शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गईं।

एक वर्ष के बाद उस स्थान पर नागकन्याएं आईं, तब नागकन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा से गणेश जी प्रसन्न हुए। उन्होंने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिए कहा। उस पर उस बालक ने कहा- 'हे विनायक! मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों।'

तब बालक को वरदान देकर श्री गणेश अंतर्ध्यान हो गए। इसके बाद वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और कैलाश पर्वत पर पहुंचने की अपनी कथा उसने भगवान शिव को सुनाई। चौपड़ वाले दिन से माता पार्वती शिवजी से विमुख हो गई थीं अत: देवी के रुष्ट होने पर भगवान शिव ने भी बालक के बताए अनुसार 21 दिनों तक श्री गणेश का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से माता पार्वती के मन से भगवान शिव के लिए जो नाराजगी थी, वह समाप्त हो गई।

तब यह व्रत विधि भगवान शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुनकर माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जागृत हुई। तब माता पार्वती ने भी 21 दिन तक श्री गणेश का व्रत किया तथा दूर्वा, फूल और लड्डूओं से गणेशजी का पूजन-अर्चन किया। व्रत के 21वें दिन कार्तिकेय स्वयं माता पार्वतीजी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का यह व्रत समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला व्रत माना जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्‍य के सारे कष्ट दूर होकर मनुष्य को समस्त सुख-सुविधाएं प्राप्त होती हैं।



श्री गणेश आरती


जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

एक दंत दयावंत,
चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे,
मूसे की सवारी ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

पान चढ़े फल चढ़े,
और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे,
संत करें सेवा ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

अंधन को आंख देत,
कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत,
निर्धन को माया ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

'सूर' श्याम शरण आए,
सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥

दीनन की लाज रखो,
शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो,
जाऊं बलिहारी ॥

जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा 


सुख करता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची(Sukhkarta Dukh harta)

सुख करता दुखहर्ता, वार्ता विघ्नाची,
नूर्वी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची,
सर्वांगी सुन्दर उटी शेंदु राची,
कंठी झलके माल मुकताफळांची,
जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति,
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति,
जय देव जय देव 
रत्नखचित फरा तुझ गौरीकुमरा,
चंदनाची उटी कुमकुम केशरा,
हीरे जडित मुकुट शोभतो बरा,
रुन्झुनती नूपुरे चरनी घागरिया,
जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति,
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति,
जय देव जय देव
लम्बोदर पीताम्बर फनिवर वंदना,
सरल सोंड वक्रतुंडा त्रिनयना,
दास रामाचा वाट पाहे सदना,
संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवर वंदना,
जय देव जय देव, जय मंगल मूर्ति,
दर्शनमात्रे मनःकमाना पूर्ति,
जय देव जय देव
शेंदुर लाल चढायो अच्छा गजमुख को,
दोन्दिल लाल बिराजे सूत गौरिहर को,
हाथ लिए गुड लड्डू साई सुरवर को,
महिमा कहे ना जाय लागत हूँ पद को,
जय जय जय जय जय,
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता,
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता,
जय देव जय देव
अष्ट सिधि दासी संकट को बैरी,
विघन विनाशन मंगल मूरत अधिकारी,
कोटि सूरज प्रकाश ऐसे छबी तेरी,
गंडस्थल मद्मस्तक झूल शशि बहरी,
जय जय जय जय जय,
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता,
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता,
जय देव जय देव
भावभगत से कोई शरणागत आवे,
संतति संपत्ति सबही भरपूर पावे,
ऐसे तुम महाराज मोको अति भावे,
गोसावीनंदन निशिदिन गुण गावे,
जय जय जी गणराज विद्यासुखदाता,
धन्य तुम्हारो दर्शन मेरा मत रमता|

जय देव जय देव

ॐ गैन गणपति धुन मंत्र। गणेश हिंदू पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण देवता है, गणपति और विनायक नाम से भी उपयोग होता है। वह हाथी सिर वाले भगवान हैं, जिन्हें पूजा में सर्वप्रथम अवधारणा की जाती है। किसी भी शुभ अवसर की शुरुआत के लिए, उन्हें सर्वप्रथम पूजा किया जाता है।


श्री गणेश भजन

ॐ गन गणपतए नमो नमः
श्री सिद्धि विनायक नमो नमः
अष्टविनायक नमो नमः
गणपति बाप्पा मोरया

ॐ गन गणपतए नमो नमः
श्री सिद्धि विनायक नमो नमः
अष्टविनायक नमो नमः
गणपति बाप्पा मोरया

ॐ गन गणपतए नमो नमः
श्री सिद्धि विनायक नमो नमः
अष्टविनायक नमो नमः
गणपति बाप्पा मोरया

ॐ गन गणपतए नमो नमः
श्री सिद्धि विनायक नमो नमः
अष्टविनायक नमो नमः
गणपति बाप्पा मोरया

ॐ गन गणपतए नमो नमः
श्री सिद्धि विनायक नमो नमः
अष्टविनायक नमो नमः
गणपति बाप्पा मोरया

ॐ गन गणपतए नमो नमः
श्री सिद्धि विनायक नमो नमः
अष्टविनायक नमो नमः
गणपति बाप्पा मोरया




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